शिक्षा को चौकोर खानों में मत समेटो

प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में भारत में एक क्रांति घटित हुई है सदियों से शिक्षा से वंचित एससी एसटी ओबीसी अल्पसंख्यक समाजों के बच्चे स्कूलों में आये हैं।यह क्रांति भारत के दूरस्थ क्षेत्रों तक देखी जा रही है।यह परिवेश अशिक्षित है।परंतु बहुत बडी आशा ,बहुत कठिनाइयों को सिर लेकर इनमें पढाने की आतुरता बढी है।पिछले तीन चार वर्षों से नियमितता में भी गजब का सुधार है।ड्रापआउट भी कम हो रहा है।अर्थात चिंगारी उठ चुकी है ।

अब शिक्षा की बात होनी थी ,अंक -अक्षर की यात्रा शुरु होनी थी ।संसाधन बढे अच्छी बात पर परिवेश के अनुकूल कमी महसूस नही हो रही थी।इस बीच मिड डे मील अन्नपूर्णा दूध,टीकाकरण ,योग,व्यायाम आदि भी जुडा उन इक्का-दुक्का शिक्षकों के बावजूद ।यहाँ तक भार सहनीय था।शिक्षक दुनिया के सबसे बेहतरीन सीसीई पद्धति से पढायें यह भी अच्छा था ।

मगर सीसीई का चौकोर खानों में रिकॉर्ड संघारण से शिक्षक बच्चों के अभिमुख न रहा।इसी दौरान जब शुरुआत हो रही थी अचानक शैक्षणिक गुणवत्ता और क्वालिटी एजुकेशन न समझ पडने वाला एक ओर चौकोर खानों का तूफान आ गया।इधर देश डिजिटल विकास की ओर था शिक्षा में डिजिटलीकरण का ऐसा दौर चला कि शाला दर्पण, शाला सिद्धि, यू डाइस,आदि तमाम चौकोर खानों के जंजाल में आंकड़ों को भरवाने में लग गया।उधर वह आये बच्चे जिन्हें शिक्षक की इतिहास में सबसे अधिक जरूरत इस समय थी,न पाकर उन्होंने स्कूल का माहौल ही बदल दिया।शैली-कल्चर बदल दी।

जब बहुत छोटे संभव लक्ष्य लेकर चलने की जरुरत थी जिससे शिक्षक का मुख बच्चों की ओर ही रहे उस समय शिक्षक सरकार अभिमुख हो गये।एक अस्वीकार्य माहौल कल्चर बन गया।दूसरी ओर चौकोर खानों में रिकॉर्ड संघारण कर हम पुरस्कार उपलब्धि के पात्र बन गये।

कम शिक्षकों और संसाधनों में आँकड़ेबाजी के बडे खेल खेलने पर उतारूपन ने इस क्रांति पर पानी फेर दिया।काश प्रत्येक बच्चे को आठ साल में कम से कम कक्षा तीन का न्यूनतम लक्ष्य पूरा होता।अनुशासन व्यवस्था कल्चर कल्याण अंक -अक्षर ज्ञान न्याय सम्मान संस्कार के लिए तो शिक्षकों को समय चाहिए।

ऐसा नहीं हृदय पीडा पर शिक्षक ने समयाभाव की बात नहीं उठाई ।मगर जब उठाई तो नये शिक्षक और सहायक स्टाफ की जगह शिक्षकों का ही समय बढाकर चुप कर दिया गया।पूरा तंत्र पूर्व निर्धारित पंचाग से भटक त्वरित सूचना संग्रहण करने लगा।सतत जो सीसीई का प्रथम शब्द था उस पर अमल न हो सका।इन शिक्षकों को बीएल ओ आदि अन्य दायित्व भी निरन्तर रहे।खैर अब भी शिक्षक को विद्यार्थी अभिमुख रहने दिया जाए तो नये जुडे समाज की आशा बनी रहेगी।

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